पूर्व मुख्यंमंत्री की पत्नी होते हुए भी आखिर गीता कोड़ा चुनाव क्यों हार गईं? आखिर क्यों जनता ने उन्हें नकार दिया? क्या यह उनके प्रदर्शन का परिणाम है, या फिर बदलते राजनीतिक समीकरणों का असर? चलिए, जानते हैं इस चुनावी हार की बड़ी वजह –
“गीता कोड़ा, झारखंड की राजनीति में एक मजबूत चेहरा हैं। मधु कोड़ा की पत्नी होने के बावजूद, उन्होंने अपनी अलग पहचान बनाई। 2019 में विधानसभा चुनाव जीतकर उन्होंने अपने क्षेत्र के लोगों के बीच एक उम्मीद जगाई थी। लेकिन इस बार नतीजे अलग रहे। गीता कोड़ा अपने गढ़ को बचाने में असफल रहीं।”
असफल होने में “जनता का असंतोष एक बड़ी वजह रही, लेकिन क्या सिर्फ यही कारण था? चलिए अब जानते हैं विशेषज्ञों की राय।”
“राजनीतिक विशेषज्ञ मानते हैं कि गीता कोड़ा की हार का सबसे बड़ा कारण था क्षेत्रीय मुद्दों पर ध्यान न देना और विपक्ष की आक्रामक रणनीति।” “मधु कोड़ा के कार्यकाल में हुए भ्रष्टाचार के आरोपों का असर गीता कोड़ा की छवि पर भी पड़ा।
“चुनाव प्रचार में गीता कोड़ा विपक्ष को चुनौती देने में भी कमजोर नजर आईं। जहां एक तरफ जनता बदलाव चाह रही थी, वहीं दूसरी तरफ विपक्षी उम्मीदवार ने आक्रामक प्रचार और स्थानीय मुद्दों को प्रमुखता दी।” “गीता कोड़ा की हार यह दिखाती है कि राजनीति में केवल नाम और प्रभावशाली रिश्ते काफी नहीं होते। जनता को सीधे जुड़े मुद्दों पर ठोस काम चाहिए। मधु कोड़ा की राजनीतिक विरासत के बावजूद, गीता कोड़ा को अपनी अलग और प्रभावी पहचान बनानी होगी।”
हम आपको बता दे, इस चुनाव में गीता को 3,51,762 वोट मिले जबकि झारखंड मुक्ति मोर्चा की जोबा माझी को 5,20,164 वोट आए. जोबा ने 1,68,402 मतों के अंतर से गीता कोड़ा को हराया था. जबकि 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान गीता कांग्रेस में थीं और उन्होंने सिंहभूम सीट पर पार्टी के लिए जीत हासिल की थी.
“तो ये थी गीता कोड़ा की हार की कहानी। एक ओर जनता का असंतोष, और दूसरी ओर विपक्ष की आक्रामक रणनीति। अब देखना होगा कि गीता कोड़ा इस हार से क्या सबक लेती हैं और भविष्य की राजनीति में क्या बदलाव लाती हैं ?