![](https://livebihar.in/wp-content/uploads/2024/12/Aaloo.jpg)
लाइव बिहार
रांची / डेस्क : पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा झारखंड में आलू की सप्लाई रोकने से राज्य में आलू की किल्लत हो गई है. आलू संकट इतना गहरा गया है कि मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने भी इस मामले में संज्ञान लिया है. सीएम के निर्देश पर राज्य की मुख्य सचिव अलका तिवारी ने पश्चिम बंगाल के मुख्य सचिव मनोज पंत से आलू संकट पर बात की. पश्चिम बंगाल के मुख्य सचिव ने यह आश्वासन दिया है कि जल्द ही एक कमेटी बनाकर आलू मामले का समाधान किया जाएगा.
मालूम हो कि पश्चिम बंगाल सरकार ने अपने राज्य में आलू की कालाबाजारी और कमी रोकने के लिए आलू निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया है. झारखंड-पश्चिम बंगाल की सीमा पर आलू लदे ट्रकों को रोककर वापस भेजा जा रहा है. जिसकी वज़ह से पिछले छह दिनों के दरमियान पश्चिम बंगाल से एक भी ट्रक आलू झारखंड नहीं आया है.
दरअसल, पश्चिम बंगाल हमेशा से झारखंड में आलू सप्लाई करता रहा है. बाहर से आने वाले कुल आलू में से लगभग 80 फीसद आलू पश्चिम बंगाल से ही आता है. अगर हम ये कहें कि आलू के मामले में झारखंड की पश्चिम बंगाल पर निर्भरता है तो इसमें कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी.
अब जबकि पश्चिम बंगाल से आलू की आवक नहीं हो रही है, तो ऐसे में झारखंड में आलू की कीमतें आसमान छूने लगी हैं. एक साल पहले इसी वक्त में यहां आलू 20-30 रुपए प्रति किलो था, लेकिन अभी के वक्त में आलू 50-60 रुपए प्रति किलो बिक रहा है.
लाइव बिहार की टीम राजधानी रांची की सब्जी मंडियों में जाकर यहां के आलू व्यापारियों से बात की और जमीनी हकीकत का पता लगाया.
रांची के पंडरा थोक बाजार में आलू-प्याज़ थोक विक्रेता संघ के मुताबिक बाजार का स्टॉक शनिवार को ही खत्म हो गया है. यहां रोजाना 20 ट्रक यानी 600 टन आलू की खपत है, लेकिन पिछले छह दिनों से एक भी ट्रक आलू बाजार में नहीं आया है. सप्लाई नहीं होने से आलू की कीमत 15 रुपए प्रति किलो तक बढ़ गई है. यदि एक-दो दिनों में इसका हल नहीं निकाला गया तो प्रति क्विंटल 200 से 250 रुपए तक की बढ़ोतरी हो सकती है.
आपकी जानकारी के लिए यह भी बता दें कि आंकड़ों के मुताबिक आलू उत्पादन के मामले में झारखंड देश के टॉप 10 राज्यों में तो शामिल है, मगर उत्पादन इतना भी नहीं है कि राज्य तीन-चार महीने से ज्यादा अपने यहां के आलू पर निर्भर रह सके. यदि पिछले वर्ष की बात करें तो यहां साल 2002-23 के दौरान कुल 757 हजार टन आलू का उत्पादन हुआ जो कि पूरे देश का मात्र 1.26 फीसद है. मजबूरन राज्य को पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश और बिहार पर आलू के लिए निर्भर रहना पड़ता है.
कृषि विशेषज्ञों की राय में झारखंड में इस साल आलू की फसल भी अच्छी नहीं हुई है . क्योंकि दिवाली के समय बारिश हो गई थी. यही वजह है कि अबकी बार लोकल आलू दो-तीन महीने भी राज्य की जरूरतों को पूरा नहीं कर पा रहा है. राज्य में आलू के स्टॉक के लिए कोल्ड स्टोरेज की भी पर्याप्त सुविधा नहीं है, इसलिए यहां के किसानों के पास आलू जल्दी आलू हटाने के सिवा दूसरा विकल्प नहीं है.
राज्य में गहराए आलू संकट पर सियासत भी गरमा गई है. पहले भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी ने बयान दिया कि आलू संकट पर मुख्यमंत्री को संज्ञान लेना चाहिए. फिर अगले ही दिन मुख्यमंत्री ने संज्ञान ले लिया. लेकिन विपक्ष और सत्तारूढ़ दल के नेताओं के बीज आलू संकट पर बयानबाजी थमने का नाम नहीं ले रही है.
रांची के विधायक और भाजपा के वरिष्ठ नेता सीपी सिंह ने बयान दिया कि हेमंत सोरेन के शपथ ग्रहण में 28 नवंबर को पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी आईं थीं. रांची से जाने के बाद ऐसा क्या हुआ कि अगले दिन आलू की सप्लाई रोक दिया गया. उन्होंने कहा कि अगर झारखंड कोयला और मिनरल्स रोक दे तब क्या होगा. मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और झारखंड सरकार को समझना चाहिए. सीपी सिंह ने कहा कि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी किसी की नहीं हैं.
आलू पर भाजपा की ओर से की जा रही बयानबाजी का पलटवार सत्ताधारी दल झारखंड मुक्ति मोर्चा ने भी किया है. झारखंड मुक्ति मोर्चा के केंद्रीय प्रवक्ता मनोज पांडे ने कहा कि पश्चिम बंगाल सरकार के फैसले से बहुत ज्यादा अंतर नहीं पड़ने वाला है. आलू उत्तर प्रदेश और बिहार से भी झरखंड आ रहा है. आलू के आवक में कमी नहीं है. उन्होंने कहा कि आलू ऐसे भी एसेंशियल कमोडिटीज नहीं है. झारखंड के अधिकारी बातचीत कर रहे हैं. एक दो दिनों में सब कुछ सामान्य हो जाएगा.
जहां तक आलू संकट की गंभीरता की बात है तो झारखंड मुक्ति मोर्चा सत्तारूढ़ होने की वजह से आलू के संकट पर भले ये कह ले कि पश्चिम बंगाल से आलू नहीं आने पर कोई फर्क नहीं पड़ता, लेकिन लाइव न्यूज की ग्राउंड रिपोर्ट और आलू के व्यापारियों से बातचीत में यह स्पष्ट लगा कि यदि पश्चिम बंगाल से और दो-चार दिन आलू नहीं आया तो राज्य की अधिकांश आबादी के खाने की प्लेट से आलू गायब हो सकता है. क्योंकि कीमत बजट के बाहर चली जाएगी.