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रांची/ डेस्क : झारखंड हाईकोर्ट ने निजी कंपनियों के नौकरियों में 75 फीसदी आरक्षण देने से संबंधित अधिनियम को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई की। याचिका की सुनवाई चीफ जस्टिस एमएस रामचंद्र राव और जस्टिस दीपक रोशन की खंडपीठ ने की। मामले की सुनवाई के दौरान प्रार्थी ऑर राज्य सरकार की दलीलें सुनी गई। दोनों पक्षों के दलीलें सुनने के बाद हाईकोर्ट ने ‘झारखंड स्टेट एम्प्लायमेंट औफ़ द लोकल कैंडीडेट इन द प्राइवेट सेक्टर अधिनियम -2021’ पर रोक लगा दी। साथ ही राज्य सरकार को शपथपत्र के माध्यम से जबाव देने का निर्देश दिया गया है।
प्रार्थी के अधिवक्ता के अनुसार राज्य सरकार ने राज्य में प्राइवेट कंपनियों की नौकरियों में 75 फीसदी स्थानीय निवासियों के लिए आरक्षित करने का फैसला लिया है। कानून के माध्यम से कंपनियों को नोटिस दिया जा रहा है ऑर साथ ही उनसे कर्मचारियों को विस्तृत जानकारी देने को भी कहा जा रहा है। ऐसे नहीं करने पर कारवाई की चेतावनी भी दी जा रही है।
जानें आखिर क्या है मामला –
झारखंड में निजी क्षेत्रों में स्थानीय नीति के हवाला देते हुए 75 प्रतिशत आरक्षण स्थानीय उम्मीदवारों का नियोजन अधिनियम ,2021 की गज़ट अधिसूचना विगत 24 दिसंबर 2021 के जारी होने के दिन से लागू हो चुका है। इस अधिनियम के अनुसार निजी क्षेत्र की उन नौकरियों में स्थानीय लोगों के लिए कोटा का प्रावधान करता है, जिसमें 40 हजार रुपए तक की वेतन शामिल हैं । इस कानून के तहत 75 प्रतिशत स्थानीय लोगों को नौकरी में शामिल करने की व्यवस्था है ऑर तकनीकी रूप से दक्ष युवक ऑर युवतियों,मजदूरों की नियुक्ति में प्राथमिकता देने की बात कही गयी है। इसमें कौशल व योग्यता के आधार पर नियोक्ता का स्थानीय उम्मीदवारों को नियुक्त करने के लिए नियोक्ता द्वारा किए गए प्रयासों का मूल्यांकन भी किया जाएगा। मूल्यांकन के आधार पर नियोक्ता का दावे को रद्द या स्वीकार किया जाएगा। इस कानून में यह भी कहा गया है कि अगर संबन्धित कंपनी को उनकी आवश्यकता अनुसार स्थानीय स्तर पर प्रशिक्षित कर्मचारी उपलब्ध नहीं होते हैं ,तो वह कंपनियां सरकार के सहयोग से तीन वर्षों में ट्रेनिंग देकर नौकरी लायक बनाने के लिए प्रशिक्षण दे, जिससे कंपनी यह बहाना न बना सके कि उन्हे कौशल मजदूर नहीं मिल पा रहे हैं। नियोक्ता द्वारा नियमों का उल्लंघन करने की स्थिति में पांच लाख रुपए दंड वसूला जाएगा।
अन्य राज्यों में भी प्रयोग हुए हैं –
झारखंड से पहले भी इस तरह के कानून के प्रयोग अन्य प्रदेशों के द्वारा होते रहे हैं ।आंध्रप्रदेश सरकार ने इसी तरह का फैसला लिया था, लेकिन यह कानून इसलिए लागू नहीं हो पाया क्योंकि उस फैसले को उच्च न्यायालय में चुनौती दी गई थी। वर्ष 2019 में पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने भी मध्य प्रदेश के स्थानीय लोगों के लिए निजी क्षेत्र में नौकरियों में 70 प्रतिशत आरक्षण की घोषणा की थी। इस तरह का कानून हरियाणा सरकार ने भी लागू किया था, जिसे पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने निरस्त कर दिया है।
इस तरह की कानून से निवेश प्रभावित –
झारखंड में बने इस कानून के तहत अगर कोई निवेशक उधोग लगाता है ऑर उसे यह निर्देश दिया जाता है कि आपको 75 प्रतिशत लोगों का बहाली स्थानीय स्तर पर करनी होगी, तो क्या निवेशक यह नहीं सोचेगा कि हमें अत्याधिक कुशल लोग दूसरे राज्यों से मिल रहे हैं तो मैं झारखंड से लोगों को लेकर अपना कार्य को प्रभावित क्यों करूंगा ?। एक निवेशक के लिए पूरा भारत ही खुला है, वह चाहे जिस राज्य से कुशल कर्मचारियों एवं कामगारों को काम पर रख सकता है, ऑर वह ऐसे राज्य में अपना निवेश करना चाहेगा, जहां इस तरह के स्थानीय आरक्षण कानून लागू नहीं है।