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रांची /डेस्क : वैसे तो प्रतिदिन स्नान करना व्यक्तिगत इच्छा होती है परंतु सर्दी के मौसम में नित्य नहाने के विषय की प्रासंगिकता बनी रहती है। दोस्तों,रिश्तेदारों के बीच इसकी चर्चा खूब होती है । बहुत ऐसे लोग हैं जो गर्व से कहते हुए देखे जाते हैं कि मैं रोज नहाता हूँ परंतु कुछ व्यक्तियों को यह भी कहते सुना है कि मैं ठंड में प्रतिदिन नहीं स्नान नहीं करता हूँ क्योंकि पहले शरीर है न की नहाना जरूरी है । यह भी बात ठीक है कि कोई बीमार व्यक्ति ,बुजुर्ग ,बच्चा जिसका शरीर ठंड में नहाने में असमर्थ है परंतु ऐसे स्वस्थ्य युवाओं को कहते सुनता हूँ कि नहाना क्या जरूरी है ? ऑर अडोल चित्त से कहते हैं कि मैं प्रतिदिन नहीं स्नान करता हूँ । तब जाकर पता चलता है कि मनुष्य अपनी बुराइयों को छिपाने का भरसक प्रयास करता है । किन्तु जिसे बुराई समझ रहे हैं दरअसल में उनके लिए उपलब्धि है । परंतु यह जानना आवश्यक है कि रात में शयन के बाद शरीर की शौच मुक्ति के लिए स्नान अनिवार्य होता है । जिस प्रकार नित्य भोजन की जरूरत होती है ठीक उसी तरह स्नान का महत्व भी होता है । स्नान किसी ध्यान, चिंतन ,मनन ,पुजा से कम नहीं है ।
इन्फेक्शन से बचाता है स्नान –
आलसी व्यक्तियों के द्वारा यह भी तर्क दिया जाता है कि जाड़े में पानी ठंड लगती है लेकिन क्या हवा ठंडी नहीं हो जाती है तो क्या सर्दी के मौसम में श्वान्स लेना बंद कर देते हैं । हां यह कोई जरूरी नहीं है कि जाड़े के दिनों में शीतल जल से से ही स्नान किया जाए ,उसे गर्म करके भी नहाया जा सकता है ।अगर सुविधा के अभाव में जल गर्म नहीं हो पा रही है तो बात अलग है । किन्तु बड़े मजे की बात यह होती है की ठंडी के दिनों में गर्म पानी से नहाने से न केवल व्यक्ति ताजा महसूस करता है बल्कि खुद को फिट रखने के लिए बेहद जरूरी होता है । प्रतिदिन स्नान करने से फंगल इन्फेक्शन से बचा जा सकता है ऑर देह की सारी दुर्गंध समाप्त हो जाती है।
स्नान नहीं करने से अजीब घटना घटी –
नहाने से संबंधित अजीबोगरीब घटना पिछले साल ईरान में घटी। बता दें कि ईरान के अमौ हाजी नामक व्यक्ति का निधन स्नान करने के कारण हो गया था क्योंकि उक्त व्यक्ति 60 साल के बाद नहाया था । हाजी का मानना था कि वह स्नान करेगा तो वह बीमार हो जाएगा । इसी वजह से वह इतने वर्षों तक नहीं स्नान किया ऑर दुनिया का सबसे गंदा आदमी उसे कहा जाने लगा । अमेरिकी विश्वविधालय द युनिवेर्सिटी औफ़ उतह के जेनेटिक्स साइंस सेंटर के एक अध्यन के अनुसार ,’’ ज्यादा नहाना हमारे शरीर के सुरक्षा तंत्र को नुकसान पहुंचाता है परंतु भारतीय परंपरा में स्नान करने का कार्य धार्मिक कृत्यों से जोड़ा गया है । कहा जाता है की कोई भी धार्मिक कार्य बिना स्नान किए नहीं किया जा सकता है ऑर इसका मनोवैगयनिक पक्ष यह है कि स्नान्न करने के बाद मन भी शांत हो जाता है ऑर पुजा –पाठ ,चिंतन ,मनन में मन स्थिर हो जाता है।
पौराणिक कथाओं में भी स्नान का वर्णन –
हमारे पौराणिक ग्रंथों में भी महारानियां ,रानियां , रूपसियाँ को देह पर उबटन लगाकर स्नान करने का उल्लेख मिलता है ऑर स्नान कराने में दासियों का परिश्रम होता था । नित्य देह पर अंगराग मलकर नहाने से गुसलखाना महक उठता था । उसी तरह आधुनिक समय में तरह- तरह के सुगंधित साबुनों ऑर शैम्पू का प्रयोग स्नान के लिए किया जाता है । आज स्नानघर में सारी सुविधाएं मौजूद होती हैं । सम्पन्न घरों में पानी गर्म करने का गीजर मशीन भी लगा होता है ताकि स्नान करने का कार्य नित्यक्रिया में सम्मिलित हो सके । यूं कहें तो भारतीय परंपरा में स्नान नहीं तो कुछ नहीं यानी सौन्दर्य नहीं। क्योंकि स्नान के बाद ही सौन्दर्य प्रसाधन का इस्तेमाल करना लाज़मी होता है।
स्नान का संबंध सीधे तौर पर जीवन से जुड़ा है । बच्चा जब पैदा होता है ,तभी वह सबसे पहले स्नान करता है साथ ही भारतीय संस्कृति में स्नान का बहुत महत्व है क्योंकि अंतिम स्नान भी जीवन की एक सच्चाई है । व्यक्ति भले ही जीवन में जाड़े के दिनों में नहाने के लिए तरह –तरह का बहाना बनाता हो लेकिन जीवन के अंतिम यात्रा बिना स्नान का पूर्ण नहीं होता है चाहे ठंड का मौसम ही क्यों न हो ?