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नई दिल्ली / डेस्क : मस्जिद ढहाने की आज 32वीं बरसी है. 6 दिसंबर 1992 का दिन था, जब हजारों की संख्या में कारसेवक ‘एक धक्का और दो, बाबरी मस्जिद तोड़ दो’ के नारे लगा रहे थे और 16वीं सदी की इस मस्जिद को ढहा रहे थे. 32 साल पहले यूपी के अयोध्या में हुई यह घटना इतिहास में प्रमुखता के साथ दर्ज है, जब राम मंदिर की सांकेतिक नींव रखने के लिए उमड़ी भीड़ ने बाबरी मस्जिद गिरा दिया था. इससे देश के दो संप्रदायों के बीच पहले से मौजूद रंजिश की दरार बढ़कर खाई में बदल गई थी. साल 1990 के आसपास उभार लेने वाले राम मंदिर आंदोलन का ये सबसे बड़ा परिणाम निरल कर आया था. इस आंदोलन को संघ परिवार ने आगे बढ़ाया था. बीजेपी और वीएचपी के नेता इस पूरे आंदोलन की अगुवाई कर रहे थे. बाबरी मस्जिद को गिरने के बाद देश के कई इलाकों में सांप्रदायिक दंगे भड़क उठे, जिनमें जानमाल का भारी नुकसान हुआ. वैसे तो 6 दिसंबर 1992 के दिन की शुरूआत साल के बाकी दिनों की तरह सामान्य ही थी, लेकिन भगवान राम की जन्मस्थली पर मंदिर निर्माण के लिए सांकेतिक नींव रखने के इरादे से अयोध्या पहुंचे हजारों लोगों ने अचानक बाबरी मस्जिद के गुंबद गिराकर इस दिन को इतिहास के पन्नों में दर्ज करवा दिया. दअरसल उस दिन 6 दिसंबर 1992 का दिन था और शाम के करीब साढ़े 4 बजे का वक्त हो रहा था. कुछ पत्रकार अयोध्या में बाबरी मस्जिद के करीब बने मंच के पास पहुंचे. वहां ट्यूबवेल लगा हुआ था. कारसेवक पाइपलाइन बिछाने के लिए गड्ढा खोद रहे थे. जहां कारसेवा होनी थी, वहां तक पानी पहुंचाना था. जबकि सुप्रीम कोर्ट ने इसपर स्टे लगा रखा था. यानी विवादित ढांचे के परिसर में कुछ नहीं हो सकता था. पत्रकारों ने कारसेवकों से पूछा, आप जो कर रहे हैं इसके लिए कोई आदेश है? ये सुनते ही कारसेवक भड़क गए. भीड़ से बचते हुए पत्रकार, पर्यवेक्षक डिस्ट्रिक्ट जज प्रेम शंकर गुप्ता के पास पहुंचे. प्रेम शंकर को सुप्रीम कोर्ट ने नियुक्त किया था. उन्होंने तुरंत DM को बुलाया और मौके पर पहुंचे. नरेंद्र ने बताया कि, 6 दिसंबर 1992 के दिन कई कारसेवक पत्रकारों से नाराज हो गए थे. कई पत्रकारों की तो पिटाई भी की गई थी. कारसेवक कुछ सुनने को तैयार नहीं थे. विध्वंस से 3-4 दिन पहले से ही उनकी बॉडी लैंग्वेज अलग थी. लगने लगा था कि इस बार ढांचा शायद ही बचेगा और वे सभी किसी की सुनने के मूड में नहीं थे, ढांचा गिराना है तो गिराना है. यूपी सरकार की तरफ से CM कल्याण सिंह ने सुप्रीम कोर्ट में ढांचे की हिफाजत का लिखित आश्वासन दिया था. वहीं BJP की तरफ से विजया राजे सिंधिया ने भी ढांचे को कोई नुकसान न पहुंचाने का लिखित आश्वासन दिया था, इसके बावजूद ढांचा तोड़ा गया. आपको बता दें अयोध्या के राम मंदिर में इसी साल 22 जनवरी को रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा पूरी हो गई. इसके साथ ही राम भक्तों का सदियों का इंतजार भी खत्म हो गया. प्राण प्रतिष्ठा के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि, कुछ लोग कहते थे कि राम मंदिर के निर्माण से आग भड़क जाएगी, लेकिन उन्हें फिर से सोचना चाहिए, क्योंकि राम भगवान अग्नि नहीं, ऊर्जा हैं.