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रांची / डेस्क : एक देश एक चुनाव के मुद्दे पर वायनाड सांसद प्रियंका गांधी जेपीसी में शामिल हो सकती हैं। एक देश एक चुनाव पर बन रहे संयुक्त संसदीय समिति की गठन की प्रक्रिया शुरू हो गई है। राजनीतिक दल अपने संभावित सदस्यों का नाम सौंपे हैं।
ये संभावित चेहरे जेपीसी में शामिल हो सकते हैं –
कांग्रेस से मनीष तिवारी, जेडीयू से संजय झा , समाजवादी पार्टी से धर्मेन्द्र यादव, टीडीपी से हरीश बालयोगी, डीएमके से पी- विल्सन और सेल्व गंगापती , शिवसेना (शिंदे ) श्रीकांत शिंदे, टीएमसी से कल्याण बनर्जी और साकेत गोखले शामिल हो सकते हैं।
जेपीसी में प्रियंका गांधी शामिल हो सकती हैं –
कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी इस जेपीसी की हिस्सा बन सकती हैं। संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू ने समिति के सदस्यों के लिए सभी राजनीतिक दलों के नाम मांगे थे।
जानें आखिर क्या है एक देश, एक चुनाव का मामला –
‘एक देश –एक चुनाव ‘कोई अनूठा एवं अनोखा प्रयोग नहीं है, बल्कि हमारे स्थापित लोकतंत्र के आधार पर 1952 से 1967 तक एक साथ देश में चुनाव होते थे। यह क्रम तब टूटा जब 1968 -69 में कुछ राज्यों की विधानसभाएं विभिन्न कारणों से समय से पहले भंग कर दी गयी । सन 1971 में लोकसभा चुनाव भी समय से पहले हो गए थे । उसके बाद देश में लोकसभा ऑर विधानसभा के चुनाव अलग –अलग समय पर होने लगे। प्रधानमंत्री मोदी ऑर भाजपा सरकार देश में एक साथ चुनाव कराने की वकालत पहले से करते आ रही है। मोदी मंत्रिमंडल से पास होने के बाद लोकसभा से गुजरने के बाद संयुक्त संसदीय समिति में इसे भेजा जा रहा है।
एक देश एक चुनाव के फायदे –
देश में लोकसभा चुनाव समान्यतः पाँच साल में ही कराये जाते हैं ,विशेष परिस्थिति को छोड़कर ,लेकिन राज्यों की विधानसभाओं में राजनीतिक अस्थिरता की वजह से दशकों से चुनावी वर्ष अलग –अलग होने लगे ,ऑर इसका परिणाम यह हुआ कि हर तीसरे–चौथे महीने में किसी न किसी विधानसभा ,स्थानीय नगर निगमों ,नगर पालिकाओं ,ग्राम पंचायतों में चुनाव होते रहते हैं । इस तरह पूरा साल देश में चुनाव का माहौल बना रहता है, चुनावों की इस निरंतरता के कारण देश हमेशा चुनावी मोड में ही रहता है ,इससे न केवल प्रशासनिक ऑर नीतिगत निर्णय प्रभावित होते हैं बल्कि जिस राज्य में होने वाले चुनावों के पहले आचार संहिता लगने से विकास में खर्च होने वाली रकम स्थगित हो जाती है । सरकारी कर्मचारीयों ऑर सुरक्षाबलों को बार –बार चुनावी ड्यूटी पर लगाने से वह अपने कर्तव्य एवं दायित्वों का निर्वहन करने में असमर्थ हो जाते हैं जिससे उनका कार्य प्रभावित होता है । ऐसे में राजनीतिक लाभ भले ही किसी राजनीतिक दल का हो लेकिन सबसे ज्यादा नुकसान आम नागरिकों को ही भुगतना पड़ता है।