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रांची / डेस्क : आज लोकसभा में एक देश –एक चुनाव विधेयक बिल पेश किया जाएगा, सरकार की तरफ से केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल इस बिल को पेश करेंगे। बीजेपी ने अपने सांसदों को व्हिप जारी किया है, वहीं विपक्ष ने इस बिल के विरोध के लिए रणनीति तैयार की है। हालांकि भाजपा का कहना है कि यह एक राष्ट्रहित का मुद्दा है।
विपक्ष की विरोध रणनीति –
देश में एक देश –एक चुनाव के मुद्दे फिर से चर्चा में है। इस बार यह मुद्दा मोदी मंत्रिमंडल से पास हो गई। इस संशोधन विधेयक आज लोकसभा में पेश होने वाला है। लेकिन विपक्ष इस संशोधन बिल को विरोध करने के लिए रणनीति बनाई है। विपक्ष का कहना है कि इस संशोधन बिल से लोकतंत्र खतरे में आ जाएगा।
बसपा सुप्रीमो मायावती ने किया समर्थन –
एक देश एक चुनाव को बसपा सुप्रीमो मायावती ने समर्थन करते हुए कहा कि इससे चुनाव में होने वाले खर्चों में कमी आएगी और जन समुदाय के मुद्दों पर कार्य करने हेतु ज्यादा समय मिलेगा। मायावती ने अन्य राजनीतिक दलों से एक देश एक चुनाव विधेयक को समर्थन करने का आग्रह भी किया है।
देश में यह पहली बार नहीं हो रहा है –
हालांकि ‘एक देश –एक चुनाव ‘कोई अनूठा एवं अनोखा प्रयोग नहीं है, बल्कि हमारे संविधान निर्माताओं द्वारा स्थापित लोकतंत्र के आधार पर 1952 से 1967 तक चली आदर्श चुनाव व्यवस्था को पुनर्जीवित करना है ।यह क्रम तब टूटा जब 1968 -69 में कुछ राज्यों की विधानसभाएं विभिन्न कारणों से समय से पहले भंग कर दी गयी । सन 1971 में लोकसभा चुनाव भी समय से पहले हो गए थे । जब इस प्रकार से चुनाव पहले भी हो चुके हैं तो अब एक साथ चुनाव करवाने में अड़चन किस बात की है।
लोकहित में कार्य करने के लिए भरपूर समय मिलेगा –
देश में लोकसभा चुनाव समान्यतः पाँच साल में ही कराये जाते हैं ,विशेष परिस्थिति को छोड़कर ,लेकिन राज्यों की विधानसभाओं में राजनीतिक अस्थिरता की वजह से दशकों से चुनावी वर्ष अलग –अलग होने लगे ,ऑर इसका परिणाम यह हुआ कि हर तीसरे –चौथे महीने में किसी न किसी विधानसभा ,स्थानीय नगर निगमों ,नगर पालिकाओं ,ग्राम पंचायतों में चुनाव होते रहते हैं । इस तरह पूरा साल देश में चुनाव का माहौल बना रहता है, चुनावों की इस निरंतरता के कारण देश हमेशा चुनावी मोड में ही रहता है ,इससे न केवल प्रशासनिक ऑर नीतिगत निर्णय प्रभावित होते हैं बल्कि जिस राज्य में होने वाले चुनावों के पहले आचारसंहिता लगने से विकास में खर्च होनेवाली रकम स्थगित हो जाती है । सरकारी कर्मचारीयों ऑर सुरक्षाबलों को बार –बार चुनावी ड्यूटी पर लगाने से वह अपने कर्तव्य एवं दायित्वों का निर्वहन करने में असमर्थ हो जाते हैं जिससे उनका कार्य प्रभावित होता है । ऐसे में राजनीतिक लाभ भले ही किसी राजनीतिक दल का हो लेकिन सबसे ज्यादा नुकसान आम नागरिकों को ही भुगतना पड़ता है।