
लाइव बिहार
रांची/ डेस्क : अमेरिका के कई राज्यों में ‘फोर डे वीक ‘ का फॉर्मूला काफी लोकप्रिय हो रहा है । शिक्षक ऑर बच्चे दोनों काफी खुश हैं । एक शोध के अनुसार ,जिसमें अमेरिका के 1600 स्कूलों को शामिल किया गया था उसमें पाया गया कि लंबे अंतराल के बाद जब बच्चे स्कूल पहुँचते हैं तो वे काफी तरोताजा महसूस करते हैं ऑर पढ़ाई पर ज्यादा उत्सुकता से ध्यान दे पाते हैं ऑर शिक्षकों को भी लेसन प्लान तैयार करने ऑर पढ़ाने के नए –नए तरीकों के बारे में सोचने के लिए उपयुक्त समय मिल जाता है । इसमें कुछ स्कूलों का यह भी कहना है कि इस फोर्मूले के तहत स्कूल के नतीजों में 25 फीसदी का बढ़ोत्तरी भी हुआ है ।
अंक मशीन बनते जा रहे हैं छात्र –
छोटी उम्र से ही प्रतियोगी माहौल को झेलते बच्चे आज सिर्फ अंक लाने वाली मशीन बन चुके हैं ,जिससे उनकी बौद्धिक विकास ठीक से नहीं हो पा रही है। और इस नंबर गेम में स्कूलों का भी बराबर का सहभागिता दिन –प्रतिदिन बढ़ती जा रही है क्योंकि स्कूल को साल दर साल अंकों में वृद्धि होने से स्कूलों को जबर्दस्त फायदा होता है परिणाम स्वरूप एडमिशन संख्या बढ़ जाती है। छात्रों से यह अपेक्षा की जाती है कि वे सारे अध्याय को रटे ऑर अच्छे नंबर लाएँ। मगर इस नंबरों कि होड़ में पराजित होता है वह एक – देश का युवा , देश का भविष्य। नंबर बटोरने की होड़ में लगे बच्चे शायद हीं अपने पाठ्यक्रम के बाहर जाकर ज्ञान की खोज में लगते हैं। सिर्फ असाइनमेंट पूरा करने ऑर सैद्धांतिक सबक सीखने में इतना व्यस्त रहते हैं कि रचनात्मकता के लिए उनके पास समय नहीं होती है। ऐसे समय में , जब दुनिया रचनात्मक ऑर उत्साही व्यक्तियों की तलाश में है , भारतीय स्कूल बच्चे को सिर्फ अंक लाने के लिए प्रशिक्षित कर रहा है । रचनात्मकता को प्रभावित करता उनका थकाऊ दिनचर्या बच्चों की मासूमियत को नष्ट कर रही है ।
स्कूल बैग का बढ़ता बोझ –
स्कूल बैगों का बढ़ता वजन भी बच्चों के लिए गंभीर समस्या बनती जा रही है अगर समय रहते इस पर पर ध्यान नहीं दिया गया तो नए भारत का निर्माण की कल्पना से वंचित रहना पड़ सकता है। भारी भरकम बैग के विषय में नई शिक्षा नीति क्या कहती है यह भी जानना जरूरी है । नई शिक्षा नीति के तहत बच्चे के शरीर के वजन के 10 प्रतिशत से अधिक बैग का वजन पीठ पर लादना वर्जित है। यदि बच्चे का शरीर का वजन 20 किलोग्राम है तो स्कूल का बैग का वजन 2 किलोग्राम होना चाहिए । साथ ही नई शिक्षा नीति के अनुसार नर्सरी से लेकर कक्षा दो तक कोई होमवर्क नहीं दिया जा सकता है । कक्षा तीन से चार तक के छात्रों को प्रति सप्ताह केवल दो घंटे का होमवर्क दिया जा सकता है। 6वीं से 8वीं तक के बच्चों को रोजाना अधिकतम एक घंटा ऑर सप्ताह में 5 से 6 घंटे ही होमवर्क दे सकते हैं । माध्यमिक ऑर उच्चतर मध्यमिक छात्रों को रोज अधिकतम 2 घंटे ऑर प्रति सप्ताह 10 से 12 घंटे होमवर्क देने की सलाह है । लेकिन तमाम शिक्षा नीति के इतर स्कूलों द्वारा होमवर्क का बोझ ऑर बैगों का बढ़ता वजन बच्चों के स्कूल जाने के लिए हतोत्साहित कर रही है ।
बस्ते का बोझ कम करने की पहल-
बस्ते के बोझ को कम करने के लिए कुछ सार्थक पहल करने की जरूरत है जैसे पश्चिम में बच्चों के पास स्कूल में लौकर होते हैं ,जिससे स्कूल ले जाने वाली पुस्तकों की संख्या कम हो जाती है । ऐसा क्यों न किया जाए कि बच्चे को कोई पुस्तक लाने की जरूरत ही न रहे । शिक्षक उन्हें सौफ्ट कौपी से पढ़ाएँ ,जब स्कूलों में डिजिटली माध्यम से शिक्षा का उपयोग शुरू हो ही गया है तो यह भी संभव है कि स्कूल में लौकर की व्यवस्था जिसमें छात्र अपनी पुस्तक सहेज कर विधालय में रखे ताकि उन्हे प्रति दिन बैगों के वजन से मुक्ति मिले ऑर शिक्षक द्वारा पढ़ाए गए लेशन को अपने पास रखे गए कौपी पर नोट करे ,इससे काफी हद तक बैग का वजन कम हो जाएगा ऑर बचपन फिर से खिल उठेगा ।