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लाइव बिहार
रांची/ डेस्क : अतुल सुभाष आत्महत्या केस देश में चर्चा का विषय बना हुआ है। बता दें कि बेंगलुरु में एआई इंजीनियर अतुल सुभाष नौ दिसंबर को अपने घर में पंखे से लटककर अपनी जान दे दी। खैर आत्महत्या के मामले तो देश में हो ही रहे हैं लेकिन अतुल सुभाष आत्महत्या समाज में एक गहरा सवाल छोड़ गई है। अपनी जान देने से पहले अतुल ने डेढ़ घंटे की वीडियो बनाई ऑर 24 पन्नों की लेटर छोड़कर देश में पुरुष होने की मुश्किलों को बयान कर दिया है। अतुल ने अपनी पत्नी , ससुराल वालों ऑर न्यायिक व्यवस्था को जिम्मेदार ठहराते हुए अपनी जान दी। अतुल ने पत्नी ऑर ससुराल वालों पर झूठे केस बनाकर जबर्दस्ती पैसे वसूलने ऑर उन्हे प्रताड़ित करने का आरोप लगाया था।
दरअसल अतुल और निकिता की शादी साल 2019 में हुई थी लेकिन शादी के एक साल के बाद दोनों अलग हो गए थे। अतुल के सुसाइड नोट के अनुसार उनकी पत्नी निकिता ने शुरुआत में सेटलमेंट के लिए 1 करोड़ रुपए मांगे थे। बाद में इसे बढ़ाकर 3 करोड़ रुपये कर दिया था। अतुल का आरोप था कि निकिता और उसके घरवाले उन पर घरेलू हिंसा, दहेज प्रताड़ना समेत 9 केस दर्ज करवा दिये थे। इन सबसे थक हार के अतुल ने आत्महत्या कर ली।
आत्महत्या करने वालों में पुरुष अधिक शामिल–
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार देश में साल 2021 में कुल 164033 लोगों ने आत्महत्या की जिसमें विवाहित पुरुषों की संख्या 81063 थी वहीं महिलाओं की संख्या 28680 थी। 33.2 फीसदी पुरुषों ने पारिवारिक कारणों से ऑर 4.8 प्रतिशत ने वैवाहिक कारणों से आत्महत्या की। लेकिन सवाल है कि क्या बिना पुरुषों के पक्ष को जाने बगैर महिलाओं के पक्ष में फैसला दे दिया जाता है। दहेज प्रताड़ना ऑर घरेलू हिंसा के फर्जी मामले में बढ़ोत्तरी इस बात का संकेत है कि पुरुष बेबस नजर आ रहा है।
महिला सुरक्षा कानून का दुरुपयोग –
इस कानून का उलंघन, इसके लक्ष्य व उदेश्य का धड़ल्ले से दुरुपयोग हो रहा है । अपने पतियों से छुटकारा या परिवार से बदले की मंशा से झूठे आरोप लगाकर परेशान करने का मामला बढ़ता ही जा रहा है। हम मानते हैं कि एक महिला कभी भी अपनी इज्जत ऑर मर्यादा को सार्वजनिक करने हेतु झूठ का सहारा नहीं लेगी ,परंतु यह नहीं भूलना चाहिए कि स्त्री क्रोध, ईर्ष्या, बदला ऑर घृणा से पृथक नहीं है। हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि महिलाएं भी 498 ए के मिथ्या आरोपों के द्वारा पतियों को प्रताड़ित करने का मामला न्यायालय के सामने आते रहते हैं।
पुरुष आयोग गठन की मांग –
हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने पुरुष आयोग का गठन करने वाली याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि इसमें एक तरफा बात कही गई है। पुरुष आयोग का गठन करने वाली याचिका अपनी पत्नी से घरेलू हिंसा से पीड़ित पुरुषों के द्वारा डाली गई थी परंतु सुप्रीम कोर्ट ने इसे खारिज कर दिया था। अब सवाल यह उठता है कि क्या पुरुष अपनी पत्नी से पीड़ित नहीं हैं क्या ? क्या पुरुष अपनी पत्नी के क्रूरता ऑर घरेलू हिंसा के भुक्तभोगी नहीं है क्या ? क्या पुरुषों के लिए आवाज उठाने वाली कोई संस्था का अस्तित्व में नहीं आना चाहिए ? क्योंकि महिला आयोग जिस प्रकार महिलाओं के हित के लिए लड़ती है ठीक उसी तरह पुरुष आयोग भी पुरुषों के लिए आवाज बनकर समानता का मिसाल पेश तो कर सकता है। क्या ऐसा संभव है कि हमेशा पुरुष ही दोषी होता है महिलाएं निर्दोष होती हैं । ऐसा नहीं है परंतु महिला होने के कारण पुरुष को खलनायक बनाने की कोशिश की जाती है।
जेंडर न्यूट्रल कानून समय की मांग –
जिन –जिन देशों में वैवाहिक दुष्कर्म को अपराध के श्रेणी में रखा जाता है उन्हीं देशों में यह भी माना जाता है कि पुरुष भी अपनी पत्नी या महिला मित्र से घरेलू हिंसा के शिकार होते हैं। ऑर इसलिए उन्हें भी महिलाओं के समान घरेलू हिंसा से संरक्षण प्राप्त हैं। इसके विपरीत भारत में पुरुषों के विरुद्ध घरेलू हिंसा पर किसी प्रकार का संरक्षण की व्यवस्था नहीं है। इसी आधार पर मान लिया जाता है कि महिला सदैव शोषित होती है ऑर पुरुष शोषक होता है। जिससे समाज में दूसरे गहरे परिणाम देखने को मिल रहे हैं। युवा पुरुष वर्ग के मन में शादी से डर बनता जा रहा है ऑर शादी करने से कतराने लगे हैं।