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रांची/ डेस्क : झारखंड के मुख्यमंत्री के रूप में एक बार फिर से शपथ लेने के बाद हेमंत सोरेन ने जो पहला बड़ा फैसला लिया था, वो था डीजीपी अजय कुमार सिंह को अचानक ही हटाकर अनुराग गुप्ता को डीजीपी बनाने का.
लेकिन, अब हेमंत सरकार अपने इस फैसले से विवादों में घिरती जा रही है. मामला संघ लोक सेवा आयोग यानी UPSC की आपत्ति से आगे बढ़कर सुप्रीम कोर्ट तक चला गया है. अदालत ने मामले में सुनवाई करते हुए राज्य के मुख्य सचिव और प्रभारी डीजीपी से जवाब तलब किया है.
इससे पहले डीजीपी के पैनल पर संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) ने आपत्ति जताई थी और राज्य सरकार से जवाब मांगा था.
अब राज्य सरकार ने यूपीएससी के नोटिस के जवाब में कहा है कि पूर्व डीजीपी अजय कुमार सिंह का हटाया जाना नियम सम्मत था. सरकार ने भेजे गए आईपीएस अधिकारियों के पैनल पर विचार करने के लिए संघ से कहा है. राज्य सरकार की ओर से संघ को नया कोई प्रस्ताव भी नहीं भेजा गया है.
हेमंत सोरेन की सरकार ने पूर्व में भेजे गए आईपीएस अधिकारियों के पैनल पर ही जवाब भेजा है. आपकी जानकारी के लिए बता दें कि भारत निर्वाचन आयोग के निर्देश पर झारखंड विधानसभा चुनाव के दौरान प्रभारी डीजीपी अनुराग गुप्ता को हटाकर पूर्व डीजीपी अजय कुमार सिंह को ही फिर से डीजीपी के पद पर बैठाया गया था.
लेकिन मुख्यमंत्री पद की शपथ लेते ही हेमंत सोरेन ने अपने पुराने आदेश को दोहराया और तुरंत अजय कुमार सिंह को हटाकर अनुराग गुप्ता को फिर से प्रभारी डीजीपी बना दिया है.
झारखंड सरकार द्वारा डीजीपी के पद पर नियमित पदस्थापन को लेकर यूपीएससी को भेजे गए आईपीएस अधिकारियों के पैनल पर आयोग ने सवाल उठाया था. नियमित डीजीपी अजय कुमार सिंह को हटाकर पिछले 26 जुलाई को अनुराग गुप्ता को प्रभारी डीजीपी बनाए जाने के मामले पर आयोग ने सरकार को नोटिस भेजकर जवाब भी मांगा था।
आयोग ने सरकार से यह पूछा था कि आखिर किन परिस्थितियों में 1989 बैच के आईपीएस अधिकारी अजय कुमार सिंह को डीजीपी के पद से हटाया गया था. जानकारी के लिए बता दें कि प्रकाश सिंह बनाम भारत संघ के फैसले में सर्वोच्च न्यायालय ने डीजीपी का कार्यकाल कम से कम दो साल रखने संबंधित आदेश जारी किया था. अजय कुमार सिंह को महज डेढ़ साल के भीतर ही क्यों हटाया गया. अब यूपीएससी राज्य सरकार के जवाब की समीक्षा करेगा. और फिर आगे का फैसला लेगा.
जैसा कि हमने इस खबर की शुरुआत में ही आपको बताया कि अब यह मामला यूपीएससी से आगे बढ़कर सुप्रीम कोर्ट तक चला गया है.
पुराने डीजीपी को हटाकर प्रभारी डीजीपी बनाए जाने के इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय में भी एक अवमानना वाद चल रहा है. अदालत में यह शिकायत की गई है कि झारखंड सरकार ने नया डीजीपी बनाने की प्रक्रिया में अदालत के पिछले आदेश की अवमानना की है. इस पर संज्ञान लेते हुए अदालत ने राज्य के मुख्य सचिव और प्रभारी डीजीपी को नोटिस भेजकर उनका जवाब तलब किया था. दोनों ही अधिकारियों का जवाब सर्वोच्च न्यायालय में जा चुका है. अब अदालत में उनके जवाब की समीक्षा होगी.
आपको यह भी बता दें कि राज्य सरकार ने नियमित डीजीपी के लिए आइपीएस अधिकारियों के नामों का जो पैनल भेजा, उसमें एक बार फिर अजय कुमार सिंह का नाम भेजा था. नियमित डीजीपी के लिए यूपीएससी को चार आइपीएस अधिकारियों के नाम पैनल में भेजे गए थे. इनमें 1989 बैच के आईपीएस अधिकारी अजय कुमार सिंह, 1990 बैच के आईपीएस अधिकारी अनिल पाल्टा व अनुराग गुप्ता तथा 1992 बैच के आईपीएस अधिकारी प्रशांत सिंह का नाम शामिल है. लेकिन, सरकार द्वारा दोबारा अनुराग गुप्ता को ही डीजीपी बनाया गया.
निर्वाचन आयोग द्वारा पदस्थापित किए गए अजय कुमार सिंह को हटाकर अनुराग गुप्ता को फिर से डीजीपी बनाए जाने का मामला अदालत और यूपीएससी तक तो चला ही गया है, इसके साथ ही यहां के सियासी हलके में भी इसे लेकर काफी चर्चा चल रही है.
मुख्य विपक्षी पार्टी भाजपा के नेताओं ने हेमंत सरकार के इस फैसले की पहले दिन से ही आलोचना की है. उनकी ओर से यह भी कहा गया है कि अनुराग गुप्ता जो कि दोबारा डीजीपी बनाए गए हैं, वो हेमंत सोरेन के उन चहेते अफसरों में शामिल हैं जो भ्रष्टाचार में उनका साथ देते हैं